रुपये ने बनाया गिरने का नया रिकॉर्ड, पहली बार 82 के पार, आपके ऊपर होगा ये असर
Dollar Vs Rupee: एक्सपर्ट्स की मानें तो अनिश्चितता के समय में लोग सुरक्षित ठिकाना तलाशते हैं और डॉलर उन्हें सबसे बैहतर विकल्प लगता है. ऐसे में विदेशी निवेशक जब बिकवाली करते हैं, तो विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है और डॉलर की मांग बढ़ती है, जबकि रुपये समेत अन्य करेंसियों की मांग कम हो जाती है.
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 07 अक्टूबर 2022,
- (अपडेटेड 07 अक्टूबर 2022, 2:21 PM IST)
भारतीय करेंसी रुपया (Rupee) लगातार गिरने का नया रिकॉर्ड बनाता जा रहा है. बीते दिनों अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ये 81 के स्तर तक फिसल गया था, तो अब नए निचले स्तर (Rupee Record Low) को छूते हुए 82 के पार निकल गया है. शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में यह कमजोर होकर 82.33 के स्तर पर आ गया. यहां बता दें रुपये में ये गिरावट कई तरह से आप पर असर (impact) डालने वाली है.
16 पैसे टूटकर छुआ रिकॉर्ड लो स्तर
पहले बात कर लेते हैं Rupee में लगातार जारी गिरावट के बारे में, तो बीते कारोबारी दिन मुद्रा बाजार (Currency Market) में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.88 के स्तर पर बंद हुआ था. बीते कुछ दिनों में इसमें कभी मामूली बढ़त और कभी गिरावट देखने को मिल रही थी. लेकिन कई रिपोर्ट्स में इसके 82 तक गिरने की आशंका जताई जा रही थी.
शुक्रवार को जैसे ही कारोबार शुरू हुआ भारतीय करेंसी (Indian Currency) में 16 पैसे की जोरदार गिरावट आई और रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले (Rupee Vs Dollar) रिकॉर्ड निचले स्तर 82.33 तक फिसल गया. पहली बार 23 सितंबर 2022 को इसने 81 रुपये के निचले स्तर को छुआ था. जबकि उससे पहले 20 जुलाई को यह 80 रुपये का लेवल पार कर गया था. यहां बता दें रुपया साल भर पहले अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 74.54 के स्तर पर था.
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रुपये में गिरावट के बड़े कारण
भारतीय मुद्रा रुपये में लगातार आ रही गिरावट के एक नहीं बल्कि कई कारण है. हालांकि, इसके टूटने की सबसे बड़ी वजह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी को माना जा रहा है. दरअसल, अमेरिका में महंगाई (US Inflation) चार दशक के उच्च स्तर पर बनी हुई है और इसके चलते वगां ब्याज दरें लगातार बढ़ (US Rate Hike) रही हैं. बीते दिनों एक बार फिर से फेड रिजर्व ने इनमें 0.75 फीसदी की भारी-भरकम बढ़ोतरी की.
दरें बढ़ने की रफ्तार में सुस्ती नहीं आने का संकेत मिलने के कारण दुनिया भर की करेंसी डॉलर के मुकाबले तेजी से गिर रही हैं. क्योंकि डॉलर के मजबूत होने पर इन्वेस्टर्स दुनिया भर के बाजारों से क्या विदेशी मुद्रा स्टॉक से सुरक्षित है पैसे निकाल रहे हैं और सुरक्षा के लिहाज से अमेरिकी डॉलर में अपना इन्वेस्टमेंट झोंक रहे हैं. इन्वेस्टर्स की इस बिकवाली का असर रुपया समेत दुनिया भर की करेंसियों पर हो रहा है. इसके अलावा जबकि, रूस और यूक्रेन युद्ध और उससे उपजे भू-राजनैतिक हालातों ने भी रुपया पर दबाव बढ़ाने का काम किया है.
डॉलर बन रहा सुरक्षित ठिकाना!
विशेषज्ञों की मानें तो अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जब उथल-पुथल मचती है, तो निवेशक डॉलर की ओर अपना रुख करते हैं. डॉलर की मांग बढ़ती है तो फिर अन्य करेंसियों पर दबाव बढ़ता चला जाता है. दुनिया भर में अनिश्चितता की बात करें तो कोरोना महामारी या फिर रूस-यूक्रेन में युद्ध, इनकी वजह से आपूर्ति में रुकावट आई है, जो दुनियाभर में अव्यवस्था पैदा करने वाली साबित हुई है.
उन्होंने कहा, जब अनिश्चितता का समय होता है तो लोग सुरक्षित ठिकाना खोजते हैं और डॉलर को एक सुरक्षित ठिकाना मानते हैं. विदेशी निवेशकों जब जोरदार बिकवाली करते हैं, तो फिर विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है और डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जबकि रुपये समेत अन्य करेंसियों की मांग कम हो जाती है.
भारत के लिए इसलिए बड़ी मुसीबत
रुपये के टूटने से कई क्षेत्रों में बड़ा असर देखने को मिलता है. इसमें तेल की कीमतों से लेकर रोजमर्रा के सामनों की कीमतों में इजाफा दिखाई देने लगता है. भारत के लिए डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट इसलिए भी बड़ी मुसीबत का सबब है, क्योंकि भारत जरूरी तेल, इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है. अगर रुपये में इसी तरह गिरावट जारी रही तो आयात और महंगा हो जाएगा और आपको ज्यादा खर्च करना होगा.
गौरतलब है कि भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर है. अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता और ज्यादातर कारोबार डॉलर में ही होता है. विदेशों से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय है, मतलब मोबाइल और अन्य गैजेट्स पर महंगाई बढ़ जाएगी. बता दें भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है और इसका भी भुगतान डॉलर में ही होता है. अब डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च करना होगा, जिससे माल ढुलाई महंगी होगी और इसका असर हर जरूरत की चीज पर महंगाई के रूप में दिखाई देगा.
विदेश में बच्चों को पढ़ाना-घूमना महंगा
दरअसल, कच्चे तेल, सोना और अन्य धातुओं की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर में तय होती हैं. ऐसे में दिनों-दिन रुपये की बिगड़ रही हालत से इनकी खरीद के लिए हमें ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करना पड़ेगा. घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी बढ़ेंगी. इसके अलावा रुपये में गिरावट से भारतीयों के लिए विदेश में पढ़ाई करना और घूमना महंगा हो जाएगा. घरेलू मुद्रा में इस बड़ी गिरावट से विदेश में अब समान शिक्षा के लिए पहले की तुलना करीब 15 से 20 फीसदी ज्यादा खर्च करना पड़ेगा.
रिकॉर्ड: पहली बार 600 अरब डॉलर के पार पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, जानें खजाने में कितना है Gold
Forex in India: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड ऊंचाई पर जा पहुंचा है. 4 जून, 2021 को खत्म हुए सप्ताह में 6.842 अरब . अधिक पढ़ें
- पीटीआई
- Last Updated : June 11, 2021, 21:29 IST
नई दिल्ली. देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) 4 जून, 2021 को समाप्त सप्ताह में 6.842 अरब डॉलर बढ़कर 605.008 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया. यह पहली बार 600 अरब डॉलर को पार कर गया है. भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (Reserve Bank of India) के शुक्रवार को जारी आंकड़े ये बताते हैं.
इससे पहले 28 मई, 2021 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 5.271 अरब डॉलर बढ़कर 598.165 अरब डॉलर हो गया क्या विदेशी मुद्रा स्टॉक से सुरक्षित है था. 21 मई को समाप्त सप्ताह में 2.865 अरब डॉलर बढ़कर 592.894 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. वहीं, 14 मई, 2021 को समाप्त पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 56.3 करोड़ डॉलर बढ़कर 590.028 अरब डॉलर हो गया था.
एफसीए के बढ़ने की वजह विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त
28 मई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि मुख्य तौर पर विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां यानी एफसीए (Foreign Currency Assets) बढ़ने से हुई, जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण घटक है. रिजर्व बैंक के साप्ताहिक तौर पर जारी आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां रिपोर्टिंग वीक के दौरान 7.362 अरब डॉलर बढ़कर 560.890 अरब डॉलर हो गईं. एफसीए डॉलर में व्यक्त की जाती हैं. इसमें डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड और येन में अंकित संपत्तियां भी शामिल हैं.
देश के स्वर्ण भंडार में आई कमी
रिपोर्टिंग वीक के दौरान स्वर्ण भंडार 50.2 करोड़ डॉलर घटकर 37.604 अरब डालर रह गया. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में एसडीआर यानी विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights) 10 लाख डॉलर घटकर 1.513 अरब डॉलर रह गया. वहीं, आईएमएफ के पास देश का आरक्षित भंडार भी 1.6 करोड़ डॉलर घटकर पांच अरब डॉलर रह गया.
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विदेशी मुद्रा की बरसात कराएगा सूखे में उगने वाला बाजरा, जरिया बनेगा इंटरनेशनल मिलेट ईयर 2023, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में रहेगा फोकस
सूखे में उगने वाला बाजरा अब विदेशी मुद्रा की बरसात कराएगा. इसका जरिया इंटरनेशनल मिलेट ईयर 2023 बनेगा. फरवरी 2023 में उत्तर प्रदेश में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भी इस पर फोकस रहेगा.
Published: December 13, 2022 11:19 AM IST
Millet Crop : कम पानी और सूखी जमीन पर उपज देने वाला बाजरा अब विदेशी मुद्रा की बरसात कराएगा. चंद रोज बाद शुरू होने वाला इंटरनेशनल मिलेट ईयर 2023 इसका जरिया बनेगा. पोषक तत्वों से भरपूर अनेक प्रकार के रोगियों के लिए उपयुक्त यह बाजरा अब बड़े होटलों और किचन की शोभा बढ़ाएगा.
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दरअसल, उत्तर प्रदेश में देश के कुल उत्पादन का करीब 20 फीसदी है. प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन देश के औसत से अधिक होने के नाते इसकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं. तब तो और भी जब अच्छी-खासी पैदावार के बावजूद सिर्फ एक फीसद बाजरे का निर्यात होता है. निर्यात होने वाले में अधिकांश साबुत बाजरे का होता है. लिहाजा प्रसंस्करण के जरिए इसके निर्यात और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
फरवरी में आयोजित होने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भी इस सेक्टर पर खासा फोकस है. ऐसे में इंटरनेशनल मिलेट ईयर में बाजरे की लोकप्रियता बढ़ाने में खाद पानी का काम करेगी तो योगी सरकार का प्रसंस्करण उद्योग के प्रति सकारात्मक रवैया बोनस होगा.
ताजा आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में सर्वाधिक करीब 29 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है. इसके बाद महाराष्ट्र करीब 21 क्या विदेशी मुद्रा स्टॉक से सुरक्षित है फीसदी रकबे के साथ दूसरे नंबर पर है. कर्नाटक 13.46 फीसदी, उत्तर प्रदेश 8.06 फीसदी, मध्य प्रदेश 6.11 फीसदी, गुजरात 3.94 फीसदी और तमिलनाडु करीब 4 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है.
उत्तर प्रदेश की संभावना इस मामले में बेहतर है क्योंकि यहां प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन राष्ट्रीय औसत (1195 ) की तुलना में 1917 किग्रा है. उत्पादन के मामले में तमिलनाडु नंबर एक (2599 किग्रा) पर है. खेती के उन्नत तौर तरीके से और बेहतर उपज वाली प्रजातियों से इसके उपज को और अधिक किया जा सकता है.
मसलन साल 2022 तक यूपी में बाजरे की खेती का रकबा कुल 9,80 हेक्टेयर है, जिसे बढ़ाकर 10.19 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है. साथ ही उत्पादकता बढ़ाकर 25.53 क्विंटल प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. किसानों को इसका वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार 18 जिलों में प्रति कुन्तल 2350 रुपये की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर इसकी खरीद भी कर रही है.
गौरतलब है कि गेहूं धान और गन्ने के बाद उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है, बाजरा. खाद्यान्न एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होने के नाते यह बहुपयोगी भी है. पोषक तत्वों के लिहाज से इसकी अन्य किसी अनाज से तुलना ही नहीं है. इसलिए इसे चमत्कारिक अनाज, न्यूट्रिया मिलेट्स, न्यूट्रिया सीरियल्स भी कहा जाता है.
कृषि विशेषज्ञों की मानें तो 2018 में भारत द्वारा मिलेट वर्ष मनाने के बाद बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों की खूबियों के किसान और लोग जागरूक हुए हैं. नतीजन बाजरे के प्रति हेक्टेयर उपज, कुल उत्पादन और फसल आच्छादन के क्षेत्र (रकबे) में लगातार वृद्वि हुई.
कृषि के जानकर गिरीश पांडेय ने बताया कि बाजरे को न्यूनतम पानी की जरूरत, 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी परागण, लंबे समय तक भंडारण योग्य होना इसकी अन्य खूबियां हैं. चूंकि इसके दाने छोटे एवं कठोर होते हैं ऐसे में उचित भंडारण से यह दो साल या इससे अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है. इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है. साथ ही भंडारण में भी किसी रसायन की जरूरत नहीं पड़ती.
उन्होंने बताया कि बाजरे में गेहूं और चावल की तुलना में 3 से 5 गुना पोषक तत्व होते हैं. इसमें ज्यादा खनिज, विटामिन, खाने क्या विदेशी मुद्रा स्टॉक से सुरक्षित है के लिए रेशे और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं. लसलसापन नहीं होता. इससे अम्ल नहीं बन पाता. लिहाजा सुपाच्य होता है. इसमें उपलब्ध ग्लूकोज धीरे-धीरे निकलता है. लिहाजा यह मधुमेह (डायबिटीज) पीड़ितों के लिए भी मुफीद है. बाजरे में लोहा, कैल्शियम, जस्ता, मैग्निसियम और पोटाशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा मे होते हैं. साथ ही काफी मात्रा में जरूरी फाईबर (रेशा) मिलता है. इसमें कैरोटिन, नियासिन, विटामिन बी6 और फोलिक एसिड आदि विटामिन्स मिलते हैं. इसमें उपलब्ध लेसीथीन शरीर के स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है. यही नहीं बाजरे में पोलिफेनोल्स, टेनिल्स, फाईटोस्टेरोल्स तथा एंटीऑक्सिडैन्टस् प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. यही वजह है कि सरकार ने इसे न्यूट्री सीरियल्स घटक की फसलों में शामिल किया है.
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क्या रिजर्व फंड के तौर पर बिटकॉइन हो सकता हैं विकल्प? (Can Bitcoin Be An Option As a Reserve Fund?)
किसी भी देश में मुद्रा का संचालन वहां की सरकार और केंद्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक या फेडरल बैंक के द्वारा किया जाता है। मुद्रा को छापने के लिए एक निर्धारित सीमा में इन बैंको को रिज़र्व सम्पति के तौर पर सोना और विदेशी मुद्रा को अपने पास सुरक्षित रखना पड़ता है। एक निर्धारित सीमा में सोने और विदेशी मुद्रा को सुरक्षित रखने के बाद बैंक अपनी जरूरत के हिसाब से मुद्रा छाप सकते हैं। इसी सम्पति के आधार पर किसी मुद्रा के ऊपर यह लिखा जाता है की “मै (यानि बैंक) धारक को (यानि जिसके पास वह मुद्रा है) 100,500, डॉलर या रुपया अदा करने का वचन देता हूँ। सारे विश्व में सम्पति के तौर पर सोने को प्राथमिकता दी जाती है। अगर हम वर्ल्ड गोल्ड कौंसिल के आंकड़ों को देखें तो वर्ल्ड के टॉप 10 रिज़र्व बैंक ने जितना सोना रिज़र्व रखा है उनके आंकड़े अचंभित करने वाले हैं।
ऊपर दिखाए गए चार्ट में अमेरिका ने 8134 टन सोने को रिज़र्व रखा हुआ है, यह पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है।इसके बाद जर्मनी, इटली और फ्रांस का नंबर आता है। भारत देश की बात करें तो हम इस सूचि में 9वे स्थान पर हैं, और यहाँ रिज़र्व बैंक ने 658 टन सोने को रिज़र्व रखा हुआ है। उपभोक्ता बाजार के तौर पर देखें तो यहाँ पर भारत का दूसरा स्थान हैं। अगर हम पिछले दस साल के आंकड़े देखें जहां पर दुनिया भर के रिज़र्व बैंकों ने सोने को रिज़र्व किया है, तो पिछले दो सालों 2018-2019 में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा बढ़ा है।
यहाँ पर अगर हम देखें तो सोने के सबसे बड़े भंडार पर अमेरिका का कब्ज़ा है। सोना पिछली कई शताब्दियों से विश्वास का प्रतीक रहा है और इसकी कीमत में लगतार बढ़ोतरी भी हुई है। सोने को बैंक द्वारा सुरक्षित रखने के कई तरह की सुरक्षा व्यवस्था को अपन्ना पड़ता है, इसके लिए काफी जगह की भी जरुरत पड़ती है। सोने को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना भी काफी मुश्किल काम है। सभी देश रिज़र्व सम्पति में सोने के इलावा विदेशी मुद्रा पर भी भरोसा करते हैं, इसमें भी अमेरिकी डॉलर नंबर एक पर है।
क्या रिज़र्व बैंक बिटकॉइन को सुरक्षित सम्पति के तौर पर होल्ड कर सकता है ? यह प्रश्न बहुत दूरदर्शी सोच का नतीज़ा है। बिटकॉइन कीमत को सुरक्षित रखने का अच्छा माध्यम है और यह बात बिटकॉइन की कीमत को देख कर पता चलती है। सुरक्षित सम्पति की कीमत का बढ़ना भी एक देश की आर्थिक स्तिथि को मजबूत बनाता है।इस दिशा में अब विश्व की सरकारों को सोचने की जरुरत है। बिटकॉइन विकेन्द्रीयकृत कम्प्यूटर्स द्वारा संचालित है और इसे सुरक्षित रखना, इसका अदन प्रदान बहुत ही आसान है। रिज़र्व सम्पति के तौर पर इसकी उपयोगिता को कई कंपनियों ने समझा है जैसे ही माइक्रो स्ट्रेटजी। इस कम्पनी ने पिछले साल 15000 डॉलर प्रति बिटकॉइन के हिसाब से करीब 88000 बिटकॉइन लिया है। आज एक बिटकॉइन की कीमत 40000 डॉलर हो गयी है और इस हिसाब से यह कम्पनी एक साल में ही अपने सुरक्षित निवेश को दो गुणा से ज्यादा कर चुकी है।
सोने की शुद्ता की परख करना बहुत मुश्किल है लेकिन बिटकॉइन अपने आप में 24 कैरेट खरा सोना है। सोने को एक जगह से दूसरी जगह लाना ले जाना काफी खर्चीला है और इसके लिए काफी सुरक्षा भी चाहिए। बिटकॉइन को एक जगह से दूसरी जगह भेजना बहुत आसान, कम समय में और बहुत सस्ता है। दुनिया के कई देश इस बारे में विचार कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस USA ने 2015 में सिल्क रोड पर इस्तेमाल किये जाने वाले 44,341 बिटकॉइन को सीज़ किया था।रिसोर्ट में यह भी कहा गया है की यह बिटकॉइन फेडरल बैंक की बेलेन्स शीट में दर्ज है और सरकार के रिज़र्व फण्ड का हिस्सा है। बिटकॉइन की सबसे बड़ी खूबी यह है की यह सीमित है,और इसे और नहीं बनाया जा सकता है। अभी बाजार में करीब 89% बिटकॉइन माइनिंग के द्वारा आ चूका है। अगर दुनिया भर के देशों की सरकार और रिज़र्व बैंक बिटकॉइन को सुरक्षित निवेश के तौर पर अपनाती हैं तो यह देश के वित्य ढांचे को काफी मजबूती दे सकता है।इस बारे में सरकारों को जल्द विचार करना चाहिए।
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RBI रुपये की रक्षा के लिए 'समझदारी' से विदेशी मुद्रा भंडार का कर रहा उपयोग
भारतीय रुपया, जो कैलेंडर वर्ष 2022 की शुरुआत के बाद से गिर रहा था और कई बार निचले स्तर को छू गया था, भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के विदेशी मुद्रा भंडार को खर्च करके कई बार विवेकपूर्ण तरीके से बचाव किया है।
भारतीय रुपया, जो कैलेंडर वर्ष 2022 की शुरुआत के बाद से गिर रहा था और कई बार निचले स्तर को छू गया था, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश के विदेशी मुद्रा भंडार को खर्च करके कई बार विवेकपूर्ण तरीके से बचाव किया है।एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा, केंद्रीय बैंक द्वारा डॉलर की मांग-आपूर्ति के बीच अंतर को भरने के बीच विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट को देखते हुए आरबीआई ने पिछले कुछ वर्षो में प्रवाह और बहिर्वाह को बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित किया है।
आरबीआई की वेबसाइट से संकलित आंकड़ों के अनुसार, केंद्रीय बैंक ने इस कैलेंडर वर्ष की शुरुआत के बाद से रुपये को मुक्त गिरावट से बचाने के लिए अब तक 94.752 अरब डॉलर खर्च किए क्या विदेशी मुद्रा स्टॉक से सुरक्षित है क्या विदेशी मुद्रा स्टॉक से सुरक्षित है हैं। इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत के बाद से, इसने 71.768 अरब डॉलर का उपयोग किया है।26 अगस्त को, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 561.046 अरब डॉलर था, जो 31 दिसंबर, 2021 को 633.614 क्या विदेशी मुद्रा स्टॉक से सुरक्षित है अरब डॉलर से बहुत कम है।
एलकेपी सिक्योरिटीज के वीपी रिसर्च एनालिस्ट जतिन त्रिवेदी ने कहा, बहिर्वाह वैश्विक रहा है, क्योंकि सभी जोखिम भरी संपत्तियों में इक्विटी सहित बिकवाली देखी गई है। धातु क्षेत्र बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है, क्योंकि अमेरिका में मंदी के संकेत के साथ-साथ कागज पर मंदी के साथ अमेरिका में बैक टू बैक कम जीडीपी संख्या ने सभी नकदी प्रवाह को डॉलर में स्थानांतरित कर दिया है। मंदी के समय में, उच्च मुद्रास्फीति की संख्या को मात देने के लिए डॉलर सबसे अच्छा दांव है।त्रिवेदी ने कहा कि इससे पिछले कुछ महीनों में एफपीआई एफआईआई द्वारा बहिर्वाह हुआ है, जिससे रुपया कमजोर हुआ है, लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष की तुलना में रुपये में गिरावट बहुत कम रही है, क्योंकि रुपये में 5 फीसदी, यूरो 10 फीसदी, पाउंड की गिरावट देखी गई है। यूएसडी की तुलना में 11.50 प्रतिशत और जापानी येन में 15 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई।
पिछले कुछ महीनों में रुपये में कई मौकों पर गिरावट दर्ज की गई है। 29 अगस्त को, यह मजबूत अमेरिकी मुद्रा और कच्चे तेल की मजबूत कीमतों के कारण अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 80.15 पर आ गया था।रुपये में गिरावट घरेलू चिंताओं के बजाय वैश्विक चिंताओं के कारण है। विश्व स्तर पर, मंदी की चिंता थी, वैश्विक केंद्रीय बैंक की नीतियों और सुरक्षित स्वर्ग की ओर ड्राइव ने अधिकांश मुद्राओं के मुकाबले डॉलर को ऊंचा कर दिया।
परमार ने कहा, विश्व स्तर पर औसत उधार लेने की लागत बढ़ रही है जो जोखिम वाली संपत्तियों के लिए नकारात्मक हो सकती है और निवेशक विदेशों के बजाय घर पर निवेश पसंद करते हैं जो ईएम में प्रवाह को कम कर सकता है।घरेलू स्तर पर, भारत में मेक एंड बाय की खपत के मामले में भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा है, लेकिन यह निर्यात है जो आईटी और फार्मा के साथ बढ़त महसूस कर रहा है, क्योंकि अनलॉक के बाद मांग में गिरावट आई है, इसलिए आयात जारी रखा गया है और निर्यात में गिरावट देखी गई है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय बाजार में भारी बिकवाली कर रहे हैं, हालांकि, जुलाई के अंत के बाद ही वे भारतीय इक्विटी में शुद्ध खरीदार बन गए हैं।एनएसडीएल के आंकड़ों के मुताबिक, कर्ज में एफपीआई निवेश 1.59 लाख करोड़ रुपये का नकारात्मक है, जिसमें जून महीने में 50,203 करोड़ रुपये की निकासी हुई, जो इस कैलेंडर वर्ष में सबसे ज्यादा है।
पिछले दो वर्षो में आरबीआई ने बाजार को स्थिर करने के लिए डॉलर खरीदा है जबकि हाल ही में जब एफपीआई इक्विटी और डेट मार्केट में बेच रहे हैं, तो वे जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे ही मुद्रास्फीति की संख्या में गिरावट आएगी, भारतीय त्योहारी सीजन के साथ घरेलू बिक्री और खपत में कमी आने की उम्मीद है।भारत में उत्सव के मौसम में कोविड प्रतिबंधों के लगभग दो साल बाद एक बड़ा प्रवाह देखने को मिलेगा और इस बार इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाएगा।
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