RBI ने पायलट डिजिटल करेंसी लॉन्च की: कैश रखने की जरूरत नहीं, 9 बैंकों के साथ CBDC होलसेल की शुरुआत
RBI ने आज यानी 1 नवंबर को देश की पहली डिजिटल करेंसी लॉन्च की। अभी पायलट प्रोजेक्ट के तहत सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी ( CBDC) जारी की गई है। इसके लिए SBI, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, HDFC बैंक, ICICI बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, यस बैंक, IDFC फर्स्ट बैंक और HSBC को चुना गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को पेश बजट के दौरान डिजिटल करेंसी जारी करने का ऐलान किया था।
दो तरह की डिजिटल करेंसी
डिजिटल करेंसी दो तरह की है- CBDC होलसेल और CBDC रिटेल। 1 नवंबर से शुरू हो रही डिजिटल करेंसी CBDC होलसेल है। इसका इस्तेमाल बड़े वित्तीय संस्थान जिसमें बैंक, बड़ी नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां और दूसरे बड़े सौदे करने वाले संस्थान करेंगे। इसके बाद CBDC रिटेल जारी होगी। इसका इस्तेमाल लोग रोजमर्रा के लेनदेन के लिए कर सकेंगे।
मौजूदा करेंसी के बराबर ही होगी e₹ की वैल्यू
e₹ यानी डिजिटल करेंसी की वैल्यू भी मौजूदा करेंसी के बराबर ही होगी। इसको भी फिजिकल करेंसी की तरह ही एक्सेप्ट किया जाएगा। e₹ से जेब में नगदी रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह भी मोबाइल वॉलेट की तरह काम करेगी। इसे रखने के लिए बैंक खाते की अनिवार्यता नहीं होगी। इससे कैशलेस पेमेंट कर सकेंगे।
अनजान व्यक्ति को जानकारी शेयर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। निजता बरकरार रहेगी। सबसे पहले नगदी पर निर्भरता घटेगी। आधिकारिक डिजिटल करेंसी का अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर? फिजिकल रुपए को छापने की लागत घटेगी। नगद अर्थव्यवस्था घटाने का लक्ष्य पाने में मदद मिलेगी। लेनदेन की लागत घटाने में भी मदद मिलेगी।
आइए जानते हैं कि CBDC आधिकारिक डिजिटल करेंसी का अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर? क्या है? सरकार को इसकी जरूरत क्यों पड़ी? आम लोगों के लिए यह कितना सुरक्षित और फायदेमंद होगी?
सवाल : क्या यह क्रिप्टोकरेंसी जैसी होगी?
जवाब : नहीं, तो फिर कैसी होगी, आइए जानते हैं…
- CBDC क्रिप्टोकरेंसी नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक का CBDC एक लीगल टेंडर होगा।
- इसे RBI जारी करेगा, इसलिए इसमें जोखिम नहीं होगा। इससे देश में आसानी से खरीदारी हो सकेगी।
- ये प्राइवेट वर्चुअल करेंसी बिटकॉइन से एकदम अलग होगी।
- प्राइवेट वर्चुअल करेंसी के साथ कई तरह की बाधाएं होती हैं और बिटकॉइन जैसी इन करेंसी को सभी देशों में मान्यता नहीं मिली है।
- साथ ही प्राइवेट वर्चुअल करेंसी के किसी सरकार से नहीं जुड़े होने की वजह से इसमें जोखिम बहुत ज्यादा होता है।
सवाल : क्या CBDC अन्य डिजिटल पेमेंट्स से ज्यादा अच्छा है?
जवाब : हां, जानिए कैसे…
मान लीजिए आप एक UPI सिस्टम से अपने बैंक अकाउंट के बजाय CBDC से लेनदेन करते हैं। इसमें कैश को हैंड ओवर करते ही इंटरबैंक सेटलमेंट की जरूरत नहीं रह जाती। इससे पेमेंट्स सिस्टम से लेनदेन ज्यादा रियल टाइम में और कम लागत में होगा। इससे भारतीय आयातक बिना किसी बिचौलिए के अमेरिकी निर्यातक को रियल टाइम में डिजिटल डॉलर का भुगतान कर सकेंगे।
सवाल : क्या CBDC के आने से बैंकों पर असर पड़ेगा?
जवाब : हां, जानिए किस तरह का असर होगा…
CBDC के आने से बैंक में जमा के लिए लेनदेन की मांग कम होगी। साथ ही सेटलमेंट रिस्क भी कम होगा। रिस्क फ्री होने के चलते CBDC बैंक डिपॉजिट को कम करेगा। साथ ही जमा पर सरकारी गारंटी में कटौती करेगा। वहीं यदि बैंक जमा राशि खो देते हैं, तो क्रेडिट बनाने की उनकी क्षमता सीमित हो जाएगी। क्योंकि केंद्रीय बैंक निजी क्षेत्र को लोन प्रदान नहीं कर सकते हैं।
क्या डिजिटल करेंसी आम लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगी?
डिजिटल करेंसी आने से सरकार के साथ आम लोगों और बिजनेस के लिए लेनदेन की लागत कम हो जाएगी। जैसे UAE में एक वर्कर को सैलरी का 50% हिस्सा डिजिटल मनी के रूप में मिलता है। इससे ये लोग अन्य देशों में मौजूद अपने रिश्तेदारों को आसानी से और बिना ज्यादा शुल्क दिए पैसे भेज सकते हैं।
वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि अभी इस तरह दूसरे देशों में पैसे भेजने पर 7% से अधिक का शुल्क चुकाना पड़ता है, जबकि डिजिटल करेंसी के आने से इसमें 2% तक की कमी आएगी। इससे लो इनकम वाले देशों को हर साल 16 अरब डॉलर (1.2 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा पैसे मिलेंगे।
Cryptocurrency News: क्या क्रिप्टोकरेंसी पर लग जाएगा प्रतिबंध? जानिए क्या बताया निर्मला सीतारमण ने
आरबीआई (Reserve Bank of India) ने 6 अप्रैल 2018 को एक परिपत्र (RBI Circular) भी जारी किया जिसमें अपनी विनियमित संस्थाओं को वर्चुअल करेंसी (Virtual Currency) में व्यापार करने या निपटान में किसी भी व्यक्ति या संस्था को सुविधा प्रदान करने के लिये सेवाएं प्रदान करने पर रोक लगाई थी।
क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने के पक्ष में रिजर्व बैंक (File Photo)
नई दिल्ली: क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने सोमवार को लोकसभा में बताया कि किसी देश की मौद्रिक (Monetary) और राजकोषीय (Fiscal) स्थिरता पर क्रिप्टोकरेंसी के अस्थिर प्रभाव से जुड़ी चिंताओं के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस क्षेत्र पर कानून बनाने की सिफारिश की है। वित्त मंत्री के अनुसार आरबीआई का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
राजकोषीय स्थिरता पर दुष्प्रभाव
उन्होंने बताया कि फिएट मुद्राओं का मूल्य मौद्रिक नीति और वैध मुद्रा के रूप में उनकी स्थिति पर निर्भर होता है हालांकि क्रिपटोकरेंसी का मूल्य पूरी तरह से अटकलों एवं उच्च रिटर्न की उम्मीदों पर निर्भर करता है जो स्थिर है। उन्होंने कहा कि इसलिए किसी देश की मौद्रिक और राजकोषीय स्थिरता पर इसका एक अस्थिर प्रभाव होगा। गौरतलब है कि फिएट मनी सरकार द्वारा जारी एक मुद्रा है। इसका अपना कोई मूल्य नहीं है, लेकिन इसका मूल्य सरकारी नियमों से लिया गया है।
रिजर्व बैंक की क्या है सिफारिश
सीतारमण ने बताया कि किसी देश की मौद्रिक और राजकोषीय स्थिरता पर क्रिप्टोकरेंसी के अस्थिर प्रभाव संबंधी चिंताओं के मद्देनजर आरबीआई ने इस क्षेत्र पर कानून बनाने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, ‘‘ आरबीआई का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।’’ उन्होंने बताया कि आरबीआई ने 24 दिसंबर 2013, एक फरवरी 2017 और पांच दिसंबर 2017 को सार्वजनिक नोटिसों के माध्यम से डिजिटल करेंसी के उपयोगकर्ताओं, धारकों और व्यापारियों को आर्थिक, वित्तीय, कानूनी, ग्राहक सुरक्षा और सुरक्षा संबंधी जोखिमों से आगाह कर रहा है।
वर्चुअल करेंसी पर क्या
सीतारमण ने कहा कि आरबीआई ने 6 अप्रैल 2018 को एक परिपत्र भी जारी किया जिसमें अपनी विनियमित संस्थाओं को वर्चुअल करेंसी में व्यापार करने या निपटान में किसी भी व्यक्ति या संस्था को सुविधा प्रदान करने के लिये सेवाएं प्रदान करने पर रोक लगाई थी। उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त, आरबीआई ने 31 मई, 2021 के परिपत्र के माध्यम से अपनी विनियमित संस्थाओं को डिजिटल करेंसी में लेनदेन के लिए ग्राहक की यथोचित परिश्रम प्रक्रियाओं को जारी रखने के लिये विभिन्न मानकों के अनुरूप कार्य के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के प्रासंगिक प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने की सलाह दी है।
आज से देश में डिजिटल करेंसी की होगी शुरुआत, RBI करेगा लांच, जानिए क्या है Digital Rupee, इसके फायदे और कैसे करना होगा इस्तेमाल
Digital Currency : आज देश में डिजिटल करेंसी यानी वर्चुअल करेंसी (डिजिटल रुपया) की शुरुआत होने जा रही है। इसका होल्सेल ट्रांजैक्शन में इसका इस्तेमाल होगा। हालांकि, अभी इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर आधिकारिक डिजिटल करेंसी का अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर? पर शुरू किया गया है। आरबीआई ने सोमवार को बयान में कहा पायलट परीक्षण के तहत सरकारी प्रतिभूतियों में द्वितीयक बाजार लेनदेन का निपटान किया जाएगा। अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, भुगतान प्रणाली को अधिक सक्षम बनाने और धन शोधन को रोकने में मदद मिलेगी।
Digital Rupee का इस्तेमाल सरकारी सिक्टोरिटीज के सेटलमेंट के लिए होगा। ग्राहक इस डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल सरकारी सिक्योरिटी में लेनदेन के लिए कर सकते हैं। इस प्रोजेक्ट में हिस्सा लेने के लिए 9 बैंको की पहचान की गई है। इसमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB), यूनियन बैंक, HDFC बैंक, ICICI बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, IDFC फर्स्ट बैंक और HSBC बैंक शामिल होंगे।
बता दें, CBDC केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए गए मुद्रा नोटों का एक डिजिटल रूप है। दुनिया भर के अधिकांश केंद्रीय बैंक इस समय सीबीडीसी जारी करने की तरीकों पर विचार कर रहे हैं और इसे जारी करने के तरीके हर देश की विशिष्ट जरूरतों के अनुसार अलग-अलग हैं। बता दें कि भारत सरकार ने आम बजट आधिकारिक डिजिटल करेंसी का अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर? में वित्त वर्ष 2022-23 से डिजिटल रुपया पेश करने की घोषणा की थी।
डिजिटल करेंसी 3 प्रकार की होती है
- क्रिप्टोकरेंसी: यह डिजिटल करेंसी है जो नेटवर्क आधिकारिक डिजिटल करेंसी का अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर? में लेनदेन को सुरक्षित करने के लिए क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती है। इस पर किसी भी देश की सरकार का नियंत्रण नहीं होता है। बिटकॉइन और एथेरियम इसके उदाहरण हैं।
- वर्चुअल करेंसी: वर्चुअल करेंसी डेवलपर्स या प्रक्रिया में शामिल विभिन्न हितधारकों से मिलकर एक संगठन द्वारा नियंत्रित अनियमित डिजिटल करेंसी है।
- सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी): सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी किसी देश के सेंट्रल बैंक द्वारा जारी की जाती हैं। आरबीआई ने इस करेंसी को ही जारी करने की बात कही है।
डिजिटल करेंसी के फायदे
देश में आरबीआई की डिजिटल करेंसी (E-Rupee) आने के बाद आपको अपने पास कैश रखने की जरूरत नहीं होगी। इसे आप अपने मोबाइल वॉलेट में रख सकेंगे और इस डिजिटल करेंसी के सर्कुलेशन पर पूरी तरह से रिजर्व बैंक का नियंत्रण रहेगा। डिजिटल करेंसी आने से सरकार के साथ आम लोगों और बिजनेस के लिए लेनदेन की लागत कम हो जाएगी। डिजिटल रुपी या डिजिटल करेंसी भी उसी डिजिटल इकोनॉमी का अगला कदम होगा। जिस तरह मोबाइल वॉलेट से सेकंडों में ट्रांजैक्शन होता है, ठीक उसी तरह डिजिटल रुपी से भी काम होगा। इससे कैश का झंझट कम होगा जिसका बड़ा सकारात्मक असर पूरी अर्थव्यवस्था पर देखी जाएगी।
अच्छी खबर! भारत चालू वित्त वर्ष में दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होगा : सरकारी सूत्र
Indian Economy Update: महंगाई (Inflation) के बावजूद भारत चालू वित्त वर्ष में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होगा. सरकार के एक वरिष्ठ सूत्र ने बुधवार को यह बात कही.
Published: August 11, 2022 7:42 PM IST
Indian Economy Update: महंगाई (Inflation) के बावजूद भारत चालू वित्त वर्ष में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होगा. सरकार के एक वरिष्ठ सूत्र ने बुधवार को यह बात कही. सूत्र ने कहा कि सरकार मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये रिजर्व बैंक के साथ मिलकर लगातार काम कर रही है. सूत्र ने कहा, ‘जमीनी स्तर पर जो जानकारी मिल रही है, उससे पता चलता है कि खाद्य तेल और कच्चे तेल के दाम नरम हुए हैं. मॉनसून अच्छा रहने का अनुमान है. इन सबको देखते हुए आने वाले समय में मुद्रास्फीति को लेकर दबाव कम होने की उम्मीद है.’ बता दें कि खुदरा मुद्रास्फीति लगातार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. जून महीने में मंहगाई दर 7.01 प्रतिशत रही है.
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रिजर्व बैंक को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है और यह लगातार छह महीने से संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. सूत्र ने कहा कि आर्थिक वृद्धि में नरमी का सवाल ही नहीं उठता और देश चालू वित्त वर्ष और अगले वित्त वर्ष में तीव्र वृद्धि हासिल करने वाली अर्थव्यवस्था होगा. वैश्विक स्तर पर रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन और ताइवान के बीच बढ़ते तनाव के कारण उत्पन्न वैश्विक स्थिति के बावजूद सूत्र ने आर्थिक वृद्धि दर बेहतर रहने की उम्मीद जतायी है. बढ़ते व्यापार घाटे और उसके कारण चालू खाते के घाटे (कैड) पर पड़ रहे असर के बारे में उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन के दाम में कुछ नरमी आई, उर्वरक के दाम कम हुए हैं….इन सबको देखते हुए कैड में कमी आने की उम्मीद है.’
क्रिप्टो करेंसी के बारे में सूत्र ने कहा कि इस बारे में सतर्कता बरतने की जरूरत है और हाल में वजीरएक्स मामले से क्रिप्टो लेन-देन में कई तरह की गड़बड़ियों की बात सामने आई है. माल एवं सेवा कर (GST) के बारे में उन्होंने कहा कि कसीनो पर जीएसटी लगाने पर विचार कर रहा मंत्री समूह वित्त मंत्री को एक-दो दिन में रिपोर्ट सौंप सकता है.
(इनपुट: भाषा)
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भारत का 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाना तय : मॉर्गन स्टैनली रिपोर्ट
आगामी दशक के दौरान भारत में ऐसे परिवारों की तादाद पांच गुणा बढ़कर ढाई करोड़ से अधिक हो जाने की संभावना है, जिनकी आय 35,000 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष से अधिक है.
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ग्लोबल इन्वेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टैनली की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में विनिर्माण क्षेत्र, ऊर्जा प्रसार क्षेत्र तथा अत्याधुनिक डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश के ज़रिये अर्थव्यवस्था में उछाल के आसार हैं, और ये सभी कारक 2030 में खत्म होने वाले दशक से पहले भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा शेयर बाज़ार बना देंगे.
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'यह भारत का दशक क्यों है. ' (Why this is India's decade) शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में भावी भारतीय अर्थव्यवस्था को आकार देने वाले रुझानों और नीतियों का अध्ययन किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, "इसके परिणामस्वरूप भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में ताकत हासिल कर रहा है, और हमारी राय में ये विशेष बदलाव दशकों में ही होते हैं, और ये सभी निवेशकों और कंपनियों के लिए अच्छा अवसर हैं. "
चार वैश्विक रुझान - जनसांख्यिकी, डिजिटलाइज़ेशन, डीकार्बनाइज़ेशन और डीग्लोबलाइज़ेशन - भारत के पक्ष में जाते दिख रहे हैं, जिसे नया भारत कहा जा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, दशक का अंत आते-आते दुनिया की समूची वृद्धि के पांचवें हिस्से की अगुआई भारत ही करेगा.
खपत को कैसे प्रभावित करेगा विकास.
आगामी दशक के दौरान भारत में ऐसे परिवारों की तादाद पांच गुणा बढ़कर ढाई करोड़ से अधिक हो जाने की संभावना है, जिनकी आय 35,000 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष से अधिक है.
पारिवारिक आमदनी में बढ़ोतरी के चलते वर्ष 2031 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद, यानी GDP के दोगुने से भी ज़्यादा होकर साढ़े सात लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (7.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर अथवा लगभग 620 लाख करोड़ रुपये) हो जाने, खपत में उछाल आने, और फिर आने वाले दशक में बाज़ार पूंजीकरण में 11 फीसदी प्रतिवर्ष की बढ़ोतरी के साथ इसके 10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर अथवा लगभग 827 लाख करोड़ रुपये) हो जाने की संभावना है.
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2031 तक भारत की प्रति व्यक्ति आय भी 2,278 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 5,242 अमेरिकी डॉलर हो चुकी होगी, जिससे खर्चों में उछाल स्वाभाविक है.
ऑफशोरिंग : वर्क फ्रॉम इंडिया
पिछले दो वर्षों में भारत में खोले गए ग्लोबल इन-हाउस कैप्टिव केंद्रों की तादाद उससे पहले के चार वर्ष की तुलना में लगभग दोगुनी रही है. रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना महामारी के दो सालों में भारत में इस उद्योग में कार्यरत लोगों की तादाद 43 लाख से बढ़कर 51 लाख हो गई, और वैश्विक सेवाओं के व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 60 आधार अंक बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो गई.
आने वाले दशक के दौरान देश के बाहर की नौकरियों के लिए भारत में काम करने वालों की तादाद कम से कम दोगुनी होकर एक करोड़ 10 लाख से ज़्यादा हो जाने की संभावना है, और रिपोर्ट का अनुमान है कि आउटसोर्सिंग पर वैश्विक प्रतिवर्ष खर्च 180 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक लगभग 500 अरब अमेरिकी डॉलर हो सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, वाणिज्यिक और रिहायशी अचल - दोनों ही संपत्तियों की मांग पर इसका बेहद अहम असर पड़ेगा.
आधार प्रणाली तथा उसके प्रभाव
भारत में आधार प्रणाली की कामयाबी का ज़िक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि यह सभी भारतीयों के लिए मूलभूत पहचानपत्र है, जिसे छोटे-छोटे मूल्य के लेनदेन को भी भारी मात्रा में कम से कम खर्च में प्रोसेस करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
"अटकते-अटकते शुरू होने के बाद, और कानूनी समेत कई तरह की चुनौतियों से निपटने के बाद अब आधार और इंडियास्टैक सर्वव्यापी हो चुके हैं. 1.3 अरब लोगों के पास डिजिटल पहचानपत्र की मौजूदगी से वित्तीय लेनदेन आसान और सस्ता हो गया है. आधार ने जनकल्याण योजनाओं के तहत किए लाभार्थियों को किए जाने वाले सीधे भुगतान को पूरी दक्षता के साथ बिना किसी लीकेज के संभव बना दिया है. "
इसके अलावा, रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2031 तक GDP में भारत के विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा बढ़कर 21 फीसदी हो जाएगा, जिसका मतलब होगा - विनिर्माण अवसरों में एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (लगभग 82.7 लाख करोड़ रुपये) की बढ़ोतरी हो सकती है. उधर, वर्ष 2031 तक भारत की वैश्विक निर्यात बाज़ार हिस्सेदारी भी 4.5 प्रतिशत से अधिक हो जाने की उम्मीद है, जो निर्यात अवसरों को 1.2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर (लगभग 99 लाख करोड़ रुपये) तक बढ़ा सकती है. इसी दौरान, यानी अगले दशक के दौरान भारत का सेवा निर्यात भी लगभग तीन गुणा होकर 527 अरब डॉलर (जो वर्ष 2021 में 178 अरब डॉलर था) हो जाएगा.
मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट के कुछ अन्य अहम प्वाइंट इस प्रकार हैं.
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